धर्म ना पूछो, रोटी की बात: श्रीराम के ध्वजों पर ‘मोहम्मद’ की सिलाई

Kumar Anil
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Dhanbad: रामनवमी 17 को है। प्रभु श्रीराम के पताके हर घर में लहराएंगे। अखाड़ों की शोभा बढ़ाएंगे और भक्त उनका जयकारा लगाएंगे। कोयलांचल में ये पताके बनाने का काम मुस्लिम समुदाय करता है। पताकों पर प्रभु श्री राम, हनुमान जी और अन्य सजावट होती है। पताकों की सिलाई करने वाले मोहम्मद असगर और मोहम्मद अशरफ कारोबारी होते हैं। इन्हीं मुस्लिमों द्वारा सिलाई किए गए पताके हर घर में लहराने को तैयार हैं।

पेट के सामने कोई धर्म नहीं: असगर

पिछले 30 वर्षों से रांगाटांड के मोहम्मद असगर श्रीराम के ध्वज बना कर बेचते आ रहे हैं। उनका कहना है कि पेट के सामने कोई मजहब या धर्म नहीं होता। यह उनका रोजगार है। वे पताके को बहुत आकर्षक बनाते हैं ताकि श्रीराम के भक्तों को पसंद आ जाए। खरीदारों में भेदभाव नहीं होता। यह रोजगार उनके पूर्वजों से आ रहा है। ध्वजों की बिक्री साल भर होती है, लेकिन रामनवमी में बिक्री कई गुणा बढ़ जाती है। इसलिए होली के बाद से ही ध्वज बनाने वाले कारीगर इस काम में लगे रहते हैं।

राजस्थान और गुजरात से आने वाला कपड़ा

कारीगरों ने बताया कि ध्वज बनाने के लिए राजस्थान और गुजरात से कपड़े आते हैं। कारीगरों को प्रति थान कपड़ा मिलता है। उन्हें ध्वज के आकार में काटकर गोटा और सितारा लगाकर इसका निर्माण किया जाता है। फिर राम और हनुमान की आकृति को ध्वज में लगाकर सुंदर बनाया जाता है। ध्वज की कीमत बाजार में 30 रुपये से 2000 रुपये तक होती है। ये ध्वज कई इलाकों में बिकते हैं, जैसे धनबाद, झरिया, फुसबंगला, डिगवाडीह, पाथरडीह, सुदामडीह, जामाडोबा, सिंदरी, कतरास, गोविंदपुर, निरसा आदि।

पताके का बांस भी मुस्लिमों के आंगन का हिस्सा

श्रीराम के पताके मुस्लिमों द्वारा बनाए जाते हैं, और इनके बांस भी मुस्लिमों के आंगन में ही उगते हैं। गोविंदपुर, बलियापुर जैसे इलाकों में ये बांस उगाए जाते हैं और रामनवमी के मौके पर इन्हें बेचने के लिए संयंत्रित किया जाता है। कुछ किसान बांस बेचने के लिए अलग-अलग इलाकों से आते हैं। इन बांसों की कीमत 100 से 500 रुपये तक होती है। रामनवमी में इनकी बिक्री बढ़ जाती है, और इन्हें साल भर उगाया जाता है।

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