झारखंड में BJP को फिर से राज्य में सरकार बनाने के लिए बड़ी चुनौती होगी। शिवराज और हिमंत की क्षमता सारे राज्य में जानी जाती है। शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री के पद पर रहकर बहुत लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने विधानसभा चुनाव में सभी विपक्षी गठबंधनों को पराजित कर दिया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का प्रभाव भी बड़ा है।
रांची। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को झारखंड में विधानसभा चुनाव 2024 की अधिकार सौंपकर मजबूत तैयारी के संकेत दिए हैं। इससे स्पष्ट हो गया है कि पार्टी पूरी गंभीरता के साथ चुनाव में उतरेगी।
भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती है, वे फिर से राज्य में ‘डबल इंजन’ सरकार बनाने के लिए तैयार हैं। शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री के पद पर रहकर बहुत लोकप्रियता हासिल की है और उन्होंने विधानसभा चुनाव में सभी आकलन को ध्वस्त कर दिया। हिमंत बिस्वा सरमा का भी अच्छा आभामंडल है, वे असम के मुख्यमंत्री हैं।
दोनों नेताओं की जुगलबंदी से भाजपा राज्य में ‘डबल इंजन’ सरकार की वापसी के लिए पूरा प्रयास करेगी, लेकिन स्थानीय हालात भी कठिन हैं। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को राज्य में बड़ा असफल होना पड़ा था। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) कांग्रेस और राजद के संगठन ने सत्ता में आने में कामयाबी प्राप्त की थी।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को राज्य में कठोर झटका लगा है। भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन में पीछे हो जाना पड़ा था। सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीटों पर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने प्रभुत्व स्थापित किया था। विधानसभा चुनाव के बचे वोट में भाजपा अग्रणी है, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदान की दिशा अलग-अलग हो सकती है।
इसी कारण पिछले लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीतने के बाद भाजपा ने 65 प्लस के नारे के साथ विधानसभा चुनाव के अभियान की शुरुआत की थी, लेकिन सत्ता से दूर हो जाना पड़ा। अभी भी, भाजपा झारखंड के सत्ताधारी क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए तैयारी में है। इसके बदले में, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों की संयुक्त बैठक जल्द ही होने वाली है, जिसमें चुनावी रणनीति पर विचार किया जाएगा।
विवादों का असर
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा में विवादों का दौर चल रहा है। दुमका से भाजपा की प्रत्याशी सीता सोरेन को पार्टी नेताओं पर भितरघात का आरोप है। इसके बाद प्रदेश भाजपा में बवाल मच गया है। देवघर के भाजपा विधायक नारायण दास भी नाराज हैं। उनकी शिकायत गोड्डा के भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे के खिलाफ है। यह सबकुछ थाने तक पहुंच चुका है। इन विवादों से बाहर निकलना भाजपा के लिए मुश्किल होगा।
संताल और कोल्हान पर देना होगा ध्यान
भाजपा को लक्ष्य भेदने के लिए रणनीतिक तौर पर संताल परगना और कोल्हान प्रमंडल में मजबूती दर्ज करनी होगी। संताल परगना में भाजपा के पास अभी 18 विधानसभा सीटों में सिर्फ तीन सीटें हैं। झामुमो-कांग्रेस ने यहां अपनी मजबूती दिखाई है, जिसे लोकसभा चुनाव में भी दर्ज किया गया। दुमका संसदीय क्षेत्र में भी झामुमो के प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। इसलिए, संताल परगना में भाजपा को मजबूत प्रस्तुती दिखानी होगी।
कोल्हान प्रमंडल की स्थिति कठिन और विकट है। यहां 14 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कोई खाता नहीं है, जैसा कि पिछले चुनाव में भी देखा गया। जमशेदपुर पूर्वी से तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी हार का सामना किया था। उनके विरुद्ध पूर्व मंत्री सरयू राय ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। इसके बाद बड़कुंवर गगराई ने पार्टी से बगावत की और चुनाव हारा।
यह भी पढ़ें:
- कोल अधिकारियों के जीवन बीमा योजना में 31,250 रुपये की बढ़ोतरी
- Bijli Chori: JBVNL का बिजली चोरों और बकायदारों पर सख्त एक्शन! 471 जगहों पर छापेमारी, 118 पर FIR दर्ज
- भगवान बिरसा मुंडा ने ‘उलगुलान’ आंदोलन की शुरुआत क्यों और कैसे की थी, विस्तार से जानें
- झारखंड का मौसम: अभी भी बहुत गर्मी है, स्कूल का बदला समय, जानें कब आएगा मानसून