भाकपा माले भ्रष्टाचार के विरुद्ध थी। कांग्रेस, राजद और झामुमो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ थे। इसलिए, भाकपा ने अकेला चलने का निर्णय किया। लेकिन यह नीति उन्हें ज्यादा फायदा नहीं दिला पाई। आखिरकार, माले ने रणनीति बदली और झामुमो-राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाया। इसके बाद, उनकी राजनीतिक स्थिति मजबूत हो गई।
कोडरमा सीट पर माले को एक अवसर मिला
पिछले चुनाव में गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने के बाद, इस दल के 12 विधायक बिहार विधानसभा में पहुंच गए थे। पहले तो इस दल के सिर्फ तीन विधायक थे। इस लोकसभा चुनाव में भी आइएनडीआइए (जिस समय के लिए संघीय जनता दल के रूप में जाना जाता था) के साथ मिलकर पार्टी बिहार में तीन और झारखंड में एक सीट जीतने में सफल रही।
झारखंड में इस बार माले की टीम कोडरमा लोकसभा सीट जीती है। पिछले लोकसभा चुनाव में वहां पार्टी को जमानत तक नहीं बचा सकी थी, फिर भी माले को फिर से मौका मिला। माले ने झामुमो और राजद के साथ मिलकर गठबंधन को मजबूती से समर्थन दिया।
हेमंत-तेजस्वी के साथ मिलकर रिश्ता मजबूत हुआ
पिछले चुनाव में गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने के बाद, इस दल के 12 विधायक बिहार विधानसभा में पहुंच गए थे। पहले तो इस दल के सिर्फ तीन विधायक थे। इस लोकसभा चुनाव में भी आइएनडीआइए (जिस समय के लिए संघीय जनता दल के रूप में जाना जाता था) के साथ मिलकर पार्टी बिहार में तीन और झारखंड में एक सीट जीतने में सफल रही।
झारखंड में इस बार माले की टीम कोडरमा लोकसभा सीट जीती है। पिछले लोकसभा चुनाव में वहां पार्टी को जमानत तक नहीं बचा सकी थी, फिर भी माले को फिर से मौका मिला। माले ने झामुमो और राजद के साथ मिलकर गठबंधन को मजबूती से समर्थन दिया।
हेमंत-तेजस्वी के साथ मिलकर रिश्ता मजबूत हुआ
माले ने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीति बदल ली थी। राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य झारखंड में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और बिहार में राजद के कार्यकारी अध्यक्ष तेजस्वी यादव से मिलकर नए रिश्ते की शुरुआत की।
विधानसभा चुनाव में माले के विनोद सिंह बगोदर से जीते थे। चुनाव के बाद पहली बार माले खुलकर हेमंत सरकार के साथ आए। विनोद सिंह हर संकट में झामुमो-कांग्रेस-राजद सरकार के साथ खड़े रहे।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत यात्रा के दौरान पूर्वी टुंडी में रात्रि आराम किया था, और वहां पहुंचे विनोद सिंह से मिलने।
भाकपा माले के पोलिटिकल ब्यूरो के सदस्य और राज्य सचिव मनोज कुमार भक्त कहते हैं कि महागठबंधन में शामिल होने का पहला प्रयोग बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में किया गया था, जो काफी सफल रहा था। इससे बहुत लाभ मिला।
1969 में भाकपा माले ने गठन किया था
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) से अलग होकर 22 अप्रैल 1969 को भाकपा माले का गठन हुआ। राजनीति में शामिल होने के बाद पहली बार माले ने 1989 में बिहार विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती थी। पिछले कई चुनावों में बिहार में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है।
झारखंड में यह पार्टी अब तक राजधनवार और बगोदर में ही विजयी रही है। पिछले कई चुनावों में सिर्फ बगोदर में ही सफलता मिली। दो दशक पहले तक झारखंड-बिहार में वामपंथी पार्टी भाकपा मजबूत थी। लेकिन अलग रहकर आंदोलन करने की रणनीति ने माले ने धीरे-धीरे भाकपा को पीछे धकेल दिया।
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