लोकसभा चुनाव 2024: जब अखण्ड बिहार में JMM ने प्रदर्शित किया था अपना दम, 14 सीटों में से छह बार जीत कर मारी थी बाजी

Kumar Anil
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Image Source: Google/Image Edited By Canva

2024 के लोकसभा चुनाव बहुत नजदीक हैं। सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपनी रणनीतियों को तैयार कर रही हैं। झारखंड में सत्ता में बैठी झामुमो पार्टी के सामने कई मुश्किलें हैं। वहाँ पार्टी के शीर्ष नेता शिबू सोरेन बीमार हैं और कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन फंसे हैं। बड़ी बहू सीता सोरेन ने पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो लिया है।

राजीव, दुमका। वह समय था जब बिहार और झारखंड के बीच सियासी दौरा था। झामुमो के सरगना शिबू सोरेन की राजनीतिक शक्ति केंद्र सरकार तक थी। उन्होंने जल, जंगल, और जमीन के मुद्दों पर ध्यान दिया और झारखंड के अलग राज्य के नेता के रूप में मान्यता प्राप्त की। पहले ही समय में, उन्होंने आंदोलन किया जिससे आदिवासियों को उनके मुद्दों पर ध्यान दिया जाए।

शिबू सोरेन ने दुमका को खुदाई का स्थल बनाया था

यह घटना 1970 के वर्ष में हुई थी। 1970-80 के दशक शिबू सोरेन के लिए संघर्ष और आंदोलन के दिन थे, लेकिन जब उन्होंने संताल परगना के भूमि पर कदम रखा, तो उन्हें इस जगह की धरती बहुत प्रिय हो गई। दुमका ने उन्हें राजनीतिक पहचान दे दी।

शिबू सोरेन ने 1980 में पहली बार दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर दिल्ली पहुंचे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने दुमका को अपनी कर्मभूमि बनाया और सत्ता की ऊंचाई तक पहुंचे। उन्होंने 1995 में झारखंड को अलग राज्य के रूप में प्राप्त किया।

शिबू सोरेन, केंद्र में कोयला मंत्री और झारखंड के मुख्यमंत्री, वर्तमान में बीमार हैं। उन्होंने दुमका से आठ बार सांसद चुने गए हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाग लेने की संभावना है, इसलिए वर्तमान में संशय और सस्पेंस बना हुआ है।

1991 में झामुमो के लिए संसदीय राजनीति का स्वर्णिम काल

झामुमो के लोगों के नेता अनूप कुमार सिन्हा बताते हैं कि दुमका ने शिबू सोरेन को सिर्फ राजनीतिक पहचान ही नहीं, बल्कि अपना समर्थन भी दिया। जब इस इलाके में झामुमो की राजनीति की शुरुआत की गई थी, तो संताल परगना में कांग्रेस का प्रभाव था।

अनूप बताते हैं कि वर्ष 1980 में शिबू सोरेन दुमका से सांसद चुने गए थे। उस समय गुरुजी का प्रचार-प्रसार काफी अच्छा था, और कई कार्यकर्ता उनके साथ जुड़े थे, जिनमें प्रो. स्टीफन मरांडी और विजय कुमार सिंह भी शामिल थे। लेकिन वर्ष 1984 में उन्होंने कांग्रेस के पृथ्वीचंद किस्कू के खिलाफ चुनाव हारा। फिर, 1991 में झामुमो की भावनाओं को मजबूत करते हुए, शिबू सोरेन ने 14 सीटों में से छह सीटें जीतीं और यह उनकी राजनीतिक महात्मा की शुरुआत थी।

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