Nicky Yadav
जी हां इस मंदिर के जीर्णोधार के पीछे एक कहानी है।
जब सुल्तान मंसूर अली लखनऊ और फैजाबाद का प्रशासक था तब एक बार सुल्तान का एकमात्र पुत्र बीमार पड़ गया था।
वैद्य और डॉक्टरों ने जब हाथ टेक दिए थे तब सुल्तान ने थक हार कर आंजनेय यानी कि हनुमान जी के चरणों में अपना माथा रख दिया था।
उसने हनुमान जी से विनती की और तभी चमत्कार हुआ और उसका पुत्र पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया।
तब सुल्तान ने अपनी आस्था से हनुमानगढ़ी और इमली वन का निर्माण करवाया था ।
उसने इस जीर्ण शीर्ण मंदिर को विराट रूप दिया और 52 बीघा जमीन हनुमानगढ़ी और इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई थी।
तब संत अभ्या राम दास के सहयोग और निर्देशन में यह विशाल निर्माण संपन्न हुआ था।